जानिए, बाबा बालक नाथ जी के बारे में
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BABA BALAK NATH JI |
नमस्कार दोस्तों।
आज हम आपको बताने वाले है देव भूमि हिमाचल के सुप्रसिद्ध बाबा बालक नाथ जी मन्दिर के बारे में जो की हमीरपुर जिले में है । तो आइये शुरू करते है ।
बाबा बालक नाथ जी भगवान शिव के परम् भक्त थे। उन्होंने हर युग में भगवान शिव की आराधना की। सतयुग में वे “स्कंद“, द्वापर युग में “महाकौल” और उन्होंने त्रेता युग में “कौल” के रूप में जन्म लिया। कलियुग में वे हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला के अंतर्गत चकमोह गांव की पहाङी पर विराजमान हैं जो कि दयोटसिद्ध नाम से प्रसिद्ध है।
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बाबा बालक नाथ का जन्म स्थान।
कहा जाता है कि इनका जन्म गुजरात के काठियाबाद में माता लक्ष्मी और पिता वैष्णो वैश के घर हुआ था। बाबा बचपन से ही भगवान भक्ति में लीन रहते थे और वैराग्य की राह पर अग्रसर थे। माता पिता ने चिंतित होकर उनके विवाह करने की सोची। लेकिन वैरागी बाबा इस बात पर घर छोङकर जंगलों में चले गए। एक दिन उनकी भेंट जूनागढ़ की गिरनार पहाङी पर दत्तात्रेय मुनि से हुई। इसी स्थान पर बाबा ने स्वामी दत्तात्रेय से बुनियादी शिक्षा प्राप्त की और “सिद्ध” कहलाए।
द्वापर युग में बाबा महाकौल रूप में जब भगवान शिव को मिलने कैलाश जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक वृद्धा मिली। उसके उनसे कैलाश जाने का कारण पूछने पर बाबा ने जब उसे अपना लक्ष्य उसे बताया तो उसने बाबा को मानसरोवर के तट पर तपस्या करने की सलाह दी। वहां माता पार्वती रोज स्नान करने आती थी। वहां बाबा ने माता पार्वती से शिवजी से मिलने का उपाय पूछा और सफल हुए। उन्हें इतनी कम उम्र में घोर तपस्या करता देख भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें चिरायु तक बालरूप में रहने तथा भक्तों में सिद्ध के रूप में पूजे जाने का वरदान दिया।
रत्नों माता की सेवा
द्वापर युग में जिस वृद्धा से बाबा मिले थे और मार्गदर्शन मिला था, कलियुग में उसी माता रतनो से मिलने बाबा चंगरतलाई (वर्तमान में शाहतलाई ) पहुंचे और उनसे उनकी गाय चराने का आग्रह किया। माता रतनो बाबा को गाय चराने के बदले में छाछ और रोटियां देती थी। परंतु बाबा भगवान की भक्ति में इतने लीन रहते थे कि वे रोटी खाना भी भूल जाते थे।
बाबा बालक नाथ जी :- जन्म , मंदिर , कथा , कितना जानते है आप ?
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इसी तरह वे 12 वर्ष तक उनकी गाय चराते रहे परंतु जब वे वहां से जाने लगे तो माता रतनो ने उन्हें अपनी दी हुई रोटियों और छाछ का ताना दिया। बाबा ने धूना स्थल पर चिमटा मारा और तने के खोल से बारह वर्ष की संचित रोटियां निकल आईं, दूसरा चिमटा धरती पर मारा तो छाछ का फुहारा निकलने लगा और वहां छाछ का तालाब बन गया जिस कारण यह स्थान छाछतलाई कहलाया और फिर शाहतलाई हो गया। जिस स्थान पर लस्सी का तलाब बना वहां बाबा जी का चिमटा आज भी वहीँ गड़ा पड़ा है। प्राचीन वट वृक्ष तथा इसके नीचे धूना बाबा जी की धरोहर के रूप में जाना जाता है।
मोर बन कर उड गये
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इस घटना की जब आस-पास के क्षेत्र में चर्चा हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ जी को जब से ज्ञात हुआ कि एक बालक बहुत ही चमत्कारी शक्ति वाला है तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ बहुत क्रोधित हुए।
जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए जहां आजकल बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है।
आकाश में उङकर धौलगिरी पर्वत गुफा पहुंचे और वहाँ समाधि लगा ली। माता रतनो ने जब उनको वहां नहीं पाया तो रोने लगी। माता की पुकार सुनकर बाबा वहां फिर से प्कट हुए और माता को पूर्व जन्म का स्मरण कराते हुए कहा कि तुमने मेरा मार्गदर्शन किया था और मैने तुम्हारे साथ बारह घङियां बिताई थी। उसी के बदले मैने बारह साल तुम्हारी सेवा की। अब हमारा नाता पूरा हुआ। लेकिन जब भी आप मुझे पुकारोगी तो अपने घर पर मेरे नाम का आला लगा कर वहां धूपबत्ती करना और रोट चढाना, मैं अवश्य दर्शन दिया करूंगा। इसीलिए तब से बाबा के श्रद्धालु अपने घरों में बाबा के नाम का आला स्थापित करते हैं और हिन्दी महिने के पहले रविवार को रोट चढाते हैं।
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तलाई में एक कोने पर गुरना झाङी मंदिर है जहां बाबा अक्सर समाधि लगाते थे। यूँ तो यह झाङी 40-50 वर्ष से अधिक नहीं टिकती परंतु यहां यह झाङी बाबा जी की शक्ति से कईं बर्षों से लगी हुई है।
बाबा जी का रोट आटे में गुङ/चीनी, मेवे और घी डाल कर बनाया जाता है। बाबा जी ने पूरी उम्र ब्रह्मचारी की तरह बिताई इसीलिए उनकी गुफा में महिलाओं को प्रवेश करना वर्जित था और मंदिर के ठीक सामने एक चबूतरा बनाया गया है जहां से महिलाएं बाबा के दर्शन कर सकती हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के शनि शिगनापुर मंदिर पर दिए गए फैसले के बाद महिलाओं को भी मंदिर में जाने की अनुमति दे दी गई। हालांकि अभी भी बहुत ही कम महिलाएं मंदिर के अंदर जाती हैं।
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