ऐसे रोल्स में हमेशा ही शानदार रहे हैं विनय पाठक. मिडिल क्लास परिवार के हेड ऑफ द फैमिली का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है.पर सबसे खूबसूरत अभिनय की बात करे तो वो है चिंटू यानी वेदांत. 6 साल के बच्चे के रोल में वे परफेक्ट हैं.
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Movie Poster चिंटू का बर्थडे |
चिंटू का बर्थडे परिचय
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चिंटू का बर्थडे |
चिंटू का बर्थडे :- कभी-कभी कुछ फिल्में सिर्फ फिल्मों की कहानी, ऐक्टिंग और ट्रीटमेंट को देखकर दर्शको को अच्छा महसूस हो इस इरादे से भी बनायीं जाती है कुछ ऐसा ही है हालिया रिलीज फिल्म 'चिंटू का बर्थडे' के साथ। इस फिल्म को एआईबी वाले तन्मय भट्ट, गुरसिमर खांबा, रोहन जोशी और आशीष शाक्य ने प्रड्यूस किया है।
यह फिल्म पिछले काफी समय से तैयार थी लेकिन अब रिलीज हुई है।
‘चिंटू का बर्थडे’ बड़ी प्रेमी फिल्म है. यहां किसी के मन में कोई द्वेष नहीं है अमरीकी सैनिकों के मन में भी नहीं. लेकिन हम फिल्म की नीयत के लिए असलियत से समझौता नहीं कर सकते.
जब आपके घर में इनसर्जेंट होने के इतने सबूत मिलें हों, फिर भी आपको अमरीकी सैनिक सिर्फ वॉर्निंग देकर चला जाए. ये थोड़ा सा अनरियल लगता है. लेकिन उसके बाद फिल्म में ज़्यादा कुछ होने को बचता नहीं है,
इसलिए आप उसे क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर जाने देते हैं. क्योंकि इतनी सी फिल्मी चीज़ के बदले में आपको बढ़िया मात्रा में पॉज़िटिविटी मिलती है. और थोड़ा असर पर्सपेक्टिव पर भी डालती है.
चिंटू का बर्थडे क्या है कहानी?
‘चिंटू का बर्थडे फिल्म की कहानी में बिहार के चिंटू (वेदांत छिब्बर) और उसका परिवार (2004) इराक में फंसे हुए हैं.
चिंटू के मां-बाप (विनय पाठक और तिलोत्तमा शोम), बहन (बिशा चतुर्वेदी) नानी (सीमा पाहवा) चिंटू के 6th बर्थडे को स्पेशल बनाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं..
चिंटू इस बर्थडे का जश्न अपने दोस्तों के साथ करना चाहता है. क्योंकि पिछले साल वो अपना बर्थडे सेलिब्रेट नहीं कर पाया था. पर कुछ ट्विस्ट के चलते उसकी और उसके परिवार की पूरी प्लानिंग बीच में लटक जाती है.
दरअसल, उसके 6th बर्थडे वाले साल यानी 2004 के आसपास इराक में जंग का माहौल रहता है. अमेरिकी सैनिक वहां जगह जगह पर होते हैं.
अमेरिका के सैनिकों को बगदाद आए हुए सद्दाम हुसैन की सेना से जंग के लिए एक साल हो गए होते हैं. और फिल्म की कहानी का तानाबाना भी इसी के आसपास बुना गया है.
फिल्म में दिखाया गया है कि चिंटू की फैमिली वहीं फंसे रह गए थे क्योंकि वो नेपाल के पासपोर्ट के सहारे इराक पहुंचे थे. चिंटू के बर्थडे के दिन उनका इराकी मकान मालिक चिंटू को विश करने के लिए उनके घर आता है. उसके आने के ठीक बाद ही मौहल्ले में एक धमाका होता है.
इसी की जांच और उस इराकी मकान मालिक को पकड़ने के लिए दो अमेरिकी सैनिक चिंटू के घर में घुस आते हैं. चिंटू के पापा को अमेरिकी सैनिक डिटेन करते हैं. परिवार की बर्थडे प्लानिंग धरी रह जाती है.
लेकिन कोई इंसान अपने परिवार को दुखी नहीं देख सकता और फिर यहीं मदन तिवारी यानी चिंटू के पापा एक रास्ता अपनाते हैं. उस उपाय से क्या चिंटू का बर्थडे सेलिब्रेट हो पाता है या नहीं? फिल्म में यही सेंटर प्वॉइंट है. ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
चिंटू का बर्थडे एक्टिंग
विनय पाठक ऐसे रोल्स में हमेशा ही शानदार रहे हैं. मध्यवर्गीय परिवार के हेड ऑफ फैमिली का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है. पर सबसे खूबसूरत अभिनय की बात करे तो वो है चिंटू यानी वेदांत. 6 साल के बच्चे के रोल में वे परफेक्ट हैं.
चिंटू की बहन के रोल में बिशा और उसकी मां के रोल में तिलोत्तमा शोम ने भी अच्छी एक्टिंग की है. साइड रोल में चिंटू की नानी और चिंटू के दोस्तों ने फिल्म को बांधे रखने में पूरी भूमिका निभाई.
फिल्म में हर छोटी-छोटी चीज पर फोकस किया है. फिर चाहे वो फोन की रिंगटोन सारे जहां से अच्छा हो या फिर मस्जिद की अजान.
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चिंटू का बर्थडे डायरेक्शन
सत्यांशू सिंह और देवांशू के निर्देशन में बनी ये फिल्म चिंटू का बर्थडे वॉर ड्रामा के बैकग्राउंड में फैमिली सेंटिमेंट का मैसेज देती है. फिल्म का केंद्र ही एक परिवार है और फिल्म की शूटिंग भी एक ही घर में करके निर्देशक ने दर्शकों को काफी कुछ इमैजिनेशन करवाया है.
फिल्म का डायरेक्शन अच्छा है. कैमरावर्क भी अच्छा है. कार्टून्स के जरिए और चिंटू की आवाज में फिल्म की कहानी को बयां करने का तरीका दर्शकों को बांध कर रखने वाला है.
फिल्म तीन भाषाएं बोली जाती हैं. हिंदी के अलावा आपको अरबी और इंग्लिश की लाइंस भी सुनाई देगी जो वहां उन कैरेक्टर के हिसाब से बहुत ही अहम हैं.
चिंटू का बर्थडे रिव्यू
यह कहना गलत नहीं होगा कि चिंटू का बर्थडे फिल्म की पूरी कास्ट ने चाहे वह विनय पाठक हों या 6 साल के चिंटू के रोल में वेदांत, सभी ने बेहतरीन ऐक्टिंग की है।
विनय पाठक, तिलोतमा शोम और सीमा पहवा हमेशा की तरह अपने बेस्ट पर हैं। बिशा चतुर्वेदी मदन की बेटी लक्ष्मी के रोल में उम्र से ज्यादा मैच्योर लगी हैं जबकि चिंटू के रोल में वेदांत बेहद क्यूट लग रहे हैं। फिल्म के लिए दोनों डायरेक्टर्स की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इस फिल्म में राजनीति को बिल्कुल भी शामिल नहीं होने दिया और इसे एक हिंसाग्रस्त देश में वहां के लोगों और सैनिकों की मानवीय संवेदनाओं तक ही सीमित रखा है।
फिल्म चिंटू का बर्थडे में भारत जाने की छटपटाहट में जूझता मदन तिवारी का परिवार और इराक में हिंसा से परेशान अमेरिकी सैनिकों का अवसाद आपको कहानी के किसी भी कैरक्टर के लिए नेगेटिव फीलिंग आने ही नहीं देता है।
चिंटू का बर्थडे फिल्म की गति थोड़ी धीमी है तो यह कहीं-कहीं आपको कुछ बोझिल लग सकती है लेकिन चूंकि फिल्म छोटी है तो इसे मैनेज किया जा सकता है।
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