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Bajreshwari Mata Temple Kangra :- इतिहास, आरती का समय, कथा

Bajreshwari Mata Temple Kangra :- इतिहास, आरती का समय, कथा

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Bajreshwari Mata Temple Kangra History


    परिचय

    हिमाचल प्रदेश की मनोरम पहाड़ियों के अन्दर बसे शहर काँगड़ा का ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ  मां का एक ऐसा धाम है जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख उनकी तकलीफ मां की एक झलक भर देखने से दूर हो जाती है। जिसे सब नगर कोट की देवी या कांगड़े वाली माता के नाम से भी जानते है। कांगड़ा का मनोरम दृश्य जहाँ  पहाड़ों को नहलाती सूर्य देव की पवित्र किरणें सुबह के समय सोने सी दमकती काँगड़ा की विशाल पर्वत श्रृंखला ये नजारा तो आखों में घर कर लेता है।

    नगर कोट की देवी

    माता व्रजेश्वरी देवी मंदिर को नगर कोट की देवी व कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है और इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है।ब्रजेश्वरी देवी हिमाचल प्रदेश का सर्वाधिक भव्य मंदिर है। मंदिर के सुनहरे कलश के दर्शन दूर से ही होते हैं. ये भी जरूर देखें  :-    कितना जानते है शिव शंकर महादेव महाकाल के बारे में।

    “सोहे अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।। नगर कोट में तुम्हीं बिराजत। तिहूँ लोक में डंका बाजत।।”
     जिस नगरकोट की इस दुर्गा स्तुति में वर्णन किया गया है वो हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। यहाँ ब्रजेश्वरी मंदिर या कांगड़ा देवी मंदिर स्थित है।

    कांगड़ा का पुराना नाम नगर कोट था और कहा जाता है कि इस मंदिर को पांडव काल में बनाया गया था। व्रजेश्वरी मंदिर के गृभ ग्रह में माता एक पिण्डी के रुप में विराज मान है, इस पिंडी की ही देवी के रूप में पूजा की जाती है। ब्रजेश्वरी मंदिर में कई देवी व देवताओं की प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं तथा मंदिर के बायें तरफ भैरव नाथ की मूर्ति विराजमान है। भैरव नाथ भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। ये भी जरूर देखें :- Shravan 2020 :- पवित्र महीने के दौरान न करें ये 7 काम, हो सकते है भोलेबाबा नाराज।

    ब्रजेश्वरी देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक माना जाता है। माँ ब्रजेश्वरी देवी के दर्शनों के लिए यहाँ पूरे भारत से श्रद्धालु आते हैं। नवराात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में पहुंचते है।

    Bajreshwari Mata Temple Kangra का इतिहास

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    पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में उन्हे न बुलाने पर उन्होने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा और उसी हवन कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये थे। तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे। उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और उनके ऊग धरती पर जगह-जगह गिरे। जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया। उसमें से सती की बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा था जिसे माँ ब्रजेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है। ये भी जरूर देखें Mangala Gauri Vrat 2020 :- व्रत तिथि , पूजा समाग्री,प्रसाद , विधान, लाभ ,व्रत कथा


    मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है।मां ब्रजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात: आरती संपन्न होती है। खास बात यह है की दोपहर की आरती और मां को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है।  ये भी जरूर देखें :- Shravan 2020 : सावन का महीना तिथि, समय, शुभ मुहूर्त

    एक अन्य पौराणिक कथा

    एक अन्य आख्यान के अनुसार जालंधर दैत्य की अधिवासित भूमि जालंधर पीठ पर ही देवी ने वज्रास्त्र के प्रहार से उसका वध किया था।  प्रचीन कथा के अनुसार कांगड़ा में जालंधर दैत्य का किला हुआ करता था।इस दैत्य का वक्ष और कान का हिस्सा कांगड़ा की धरती पर गिरकर वज्र के समान कठोर हो गया था। उसी स्थान पर वज्रहस्ता देवी का प्राकट्य हुआ। वज्रवाहिनी देवी को शत्रुओं पर विजय पाने के लिए भी पूजा जाता रहा है।


    आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूटा गया

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    यह मंदिर 10वीं शाताब्दी तक बहुत ही समृद्ध हुआ करता था। इस मंदिर को कईं विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार लुटा था। सन 1009 में मौम्मद गजनी ने इस मंदिर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था और इस मंदिर में चाँदी से बने दरवाजों तक को उखाड कर ले गया था। यह भी माना जाता है कि मौम्मद गजनी ने इस मंदिर को ही पांच बार लुटा था। उसके बाद 1337 में मौम्मद बीन तुकलक और पांचवी शाताब्दी में सिंकदर लोदी ने भी इस समृद्ध शक्तिपीठ में लूट मचाई थी और नष्ट कर दिया था। इस मंदिर को कई बार लुटा और तोड़ा गया, लेकिन फिर भी इसे बार बार पुनः स्थापित किया जाता रहा। लोगों का कहना है कि सम्राट अकबर भी यहां आये थे और उन्होंने इस मंदिर के पुनः निर्माण में सहयोग भी दिया था।

    वर्तमान मंदिर का निर्माण

    1905 में बहुत बडा भूकंप आया था और उस भूकंप ने इस मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण 1920 में किया गया था।

    तीन गुंबद की कहानी 

    माता ब्रजरेश्वरी का यह शक्तिपीठ अपने आप में अनूठी और विशेष है क्योंकि यहां मात्र हिन्दू भक्त ही शीश नहीं झुकाते बल्कि मुस्लिम और सिख धर्म के श्रद्धालु भी इस धाम में आकर अपनी आस्था के फूल चढ़ाते हैं. कहते हैं ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के तीन गुंबद इन तीन धर्मों के प्रतीक हैं. पहला हिन्दू धर्म का प्रतीक है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है तो दूसरा मुस्लिम समाज का और तीसरा गुंबद सिख धर्म संप्रदाय का प्रतीक है

    ब्रजेश्वरी देवी की आरती समय 

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    मां ब्रजेश्वरी देवी की इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है. सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है. उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है. मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है. उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं. फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है मां की प्रात: आरती
    मां ब्रजेश्वरी धाम कैसे पहुंचे
    कैसे  पहुंचे  यहां पहुंचने के लिए पठानकोट से जोगिंदरनगर जाने वाली लाइट रेलवे से सफर किया जा सकता है। पठानकोट से कांगड़ा तीन घंटे का रास्ता है। या फिर आप पंजाब में होशियारपुर से कांगड़ा बस से भी जा सकते हैं। कांगड़ा रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी दो किलोमीटर है। मंदिर पुराने कांगड़ा शहर के मध्य में स्थित है।

    माँ बज्रेश्वरी देवी की आरती

    •  जय बज्रेश्वरी माता मैया जय बज्रेश्वरी माता। 
    • काँगड़ा मंदिर तेरा सबके मन भाता।।
    • शक्तिधाम है आँचल पिंडी रूप लिया।  
    • पालनहारी बनकर जग कल्याण किया।।
    •  जगमग ज्योति जागे अंधियारा हरतीं।  
    • अन्नपूर्णा तू ही भंडारे भरती।
    • जोड़ा सिंह का दर पे देता है पहरा। 
    • योगी ध्यानु साधु ध्यान धरे तेरा।।
    • तारा रानी मंदिर पीपल की छैया। 
    • छैने नगारे बाजे दे दर्शन मैया।।
    •  ध्यानु शीश चढ़ाया अमर किया उसको। 
    • भक्ति पंथ चलाया ज्ञान दिया सबको।।
    • परिक्रमा मंदिर की पाप नाश करती।
    • एक बार जो आता भक्ति भाव भरती।।
    • चढ़ते फूल बताशे और पंच मेवा। 
    • बड़े भाग्य से मिलती माँ तेरी सेवा।।


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